शायद कोई आदमी ऐसा काम करना चाहता भी नहीं पर कभी जब हम अपनी कसौटी पर खुद को नहीं कसते तो गलती होती ही है ।
अर्थ का अर्थ -धन के सन्दर्भ में -
हमारा जीवन धन के बिना नहीं चल सकता । धन कमाना हर एक का कर्तव्य और जरुरत दोनों है । धन दोनों हाथों से अर्जन करें खूब करे ,हमारे शास्त्रों में ईश्वर से हर सुविधा कि कामना कि गयी है । हमारे संतों ने तो इतना कहा हैं कि हे ईश्वर हमें इतना दो कि हम धन कि चिंता किये बिना तुम्हारा भजन कर सके ।
हम जीवन के कई पहलुओं का अर्थ करेंगे
हम अपने जीवन का अर्थ तभी पा सकतें हैं जब हम हर प्रकार से अपने जीवन को सार्थक बना सकें । जैसे -
आरोग्यता ,विद्या ,कला । इन तीनो का पर्याप्त समावेश जीवन में हो तो जीवन अर्थवान बन जाता है ।
पैसा -
पैसा हमारे जीवन में अर्थ रखता है । पैसा ही जीवन को जीने के लायक बनाता है । अगर जीवन में बुनियादी चीजे नहीं हैं तो उनको पूरा करने में ही जीवन चला जाता है । फिर कोई कुछ और करने कि कैसे सोच सकता है ।
हमारे संतों ने यह प्रार्थना भी कि है -कि भगवान् मुझे इतना अवश्य दो ताकि मैं अपने परिवार कि जरूरतों को पूरा कर सकूं
अध्यात्म में कुछ बातें ऐसी हैं जिनको केवल महसूस किया जा सकता है । हमारी सोच का प्रभाव जीवन पर पड़ता है । हम आपको भोजन पर पड़ने वाली सोच के बारे में बतातें हैं ।
भोजन बनाने वाला या बनाने वाली अगर दुखी मन से भोजन बनाया है तो उसे खाकर आदमी खुश नहीं रहेगा ,ईर्ष्या से बनाया हुआ भोजन खाने से एक प्रकार कि बेचैनी रहती है । अगर पकाने वाला पकाने का ठीक तरीका नहीं जानता या जानती तो ऐसा भोजन खाकर आदमी को रोगों का सामना करना पड़ता है । जैसे तैसे बनाया हुआ भोजन केवल पेट भर सकता है ।
उसी जगह ख़ुशी के साथ प्रेम के साथ बना हुआ भोजन खाकर आदमी स्वस्थ रहता है और खुश रहता है । एकदम सादा भोजन भी अगर सुरुचि पूर्ण बना है तो वह बहुत स्वदिष्ट लगता है । मन से बना भोजन खाकर हम प्रसन्न और उर्जावान रहतें हैं । जीवन में जो भोजन हम अपने प्रिय जनों को खिलातें हैं उसमे हमारी सोच का असर रहता है । इसलिए बहुत आवश्यक है कि भोजन बनाने में हम अपनी सुरुचि का ध्यान रखें तभी खाने वाला भी खुश रहेगा और जीवन अर्थवान बनेगा ।
बहुत छोटी छोटी बातों में जीवन का बड़ा अर्थ छिपा होता है । इनका पालन करके जीवन सुखद बनता है और जीवन का उद्देश्य मिलता है । केवल कुछ बन जाने से ही लक्ष्य पूरा नहीं होता । यह देखना होगा कि अमुक कार्य को करके हम जो पाना चाहते थे क्या वह हमने पाया ?अगर पाया तो समझो 'अर्थ 'मिल गया । यही है लक्ष्य तक पहुंचना ।
जब हम रचना करतें हैं तो हमारा रूप ब्रम्हा का होता है । जब हम अपनी ही रचना को सजातें हैं ,सवारतें है तब हम विष्णु होतें है पर जब उसे हटाना हो ,नयी रचना करनी हो तो हम मोह के बंधन से नहीं निकल पातें हैं । हमने अपनी शक्ति और इक्षा दोनों लगाया पर जब एक दिन पता चलता है कि जिस लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए यह बलिदान किया वो नहीं मिला तब दुनिया झूठी लगती है ,जिस आनंद कि खातिर सब कुछ लगा दिया आखिर में वो पीड़ा का कारण बन गया तब मन पछतावा करता है सोचता है अब क्या करें ,कहाँ जाएँ ?
तब आत्मिक शान्ति कि तलाश कही और करने कि सोचने लगतें है ,पर नहीं इसी में अर्थ खोज लो । अपना कर्तब्य पूरा किया ऐसा सोच कर खुद को पूर्ण समझो ।
सृजन -अगर कुछ लोगों ने सृजन न किया होता तो आज ये दुनिया हमें इस रूप में न दिखती । इसलिए अपने को सृजन में लगाओ जीवन में बेहतर अर्थ मिलेगा । जीवन रूपी पाठशाला में कोई प्रचेता ही जीत पाता है और अपने सारे सपने साकार कर पाता है । पर जो एक बार में नहीं जीत सकता उसे हार मान कर नहीं जीना चाहिए बार -बार कोशिश करनी चाहिए जब तक जीवन रहे तब तक हारना नहीं ।
कुछ ऐसे लोग जिनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है ऐसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए । सबको तो साफ़ -सुथरा जीवन नहीं मिलता । जब राहों में कांटें आ जाय तो उसे पार करके चलते रहना ही जिन्दा होने का प्रमाण होता है ,आगे बढ़ो फूल भी मिलेंगे आशा रखो उत्साह बना रहेगा । बहुत बड़ा करने कि ,बहुत ज्यादा करने कि आशा रखो । हम यहाँ अगस्त मुनि कि एक लघु कथा सुनातें हैं -
एक बार मुनि अगस्त टहलने के लिए निकले उन्होंने देखा एक चिड़िया अपनी चोंच में पानी भर कर लाती और धरती पर गिरा कर फिर जाती ,पानी भर कर लाती फिर गिराती । बार -बार उसे ऐसा करते देख मुनि ने पूछा -तुम यह क्या कर रही हो ।
चिड़िया बोली -यह समुद्र मेरे अंडे ले गया है मैं अपने अंडे पाना चाहतीं हूँ इसीलिए उसे सुखा रही हूँ ।
मुनि जी चिड़िया के इस साहस को देखकर हँसे नहीं वे बहुत खुश हुए । मुनि जी ने अपने तपो बल से अंजुली में भर कर पूरे समुद्र को पी लिया और चिड़िया को उसके अंडे मिल गए ।
जीवन में खुश रहना ही जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है । हर किसी को ख़ुशी भाग्य से नहीं मिलती । जिसको जो वस्तु भाग्य से नहीं मिली उसे कर्म के सिद्धांत को अपनाना चाहिए । ख़ुशी नहीं आ रही तो उसे लाने का उपाय खोजिये । खुश रहिये इसमें जीवन का अर्थ है ।
दुनियां में बहुत कम लोग ऐसे होतें हैं जिनकी सब कामनाएं पूरी होतीं हो ,पर प्रयास तो किया जा सकता है ,उपाय खोजा जा सकता है ,रास्ते कई होते हैं कभी तो कोई राह मिलेगी जो मेरी मंजिल तक जायेगी । अगर नहीं भी गयी तो किसी एक कमी के कारण जीवन को छोटा अथवा बुरा नहीं समझा जा सकता ।
आपके जीवन में अनेक ऐसे कारण होगे जो भर पूर ख़ुशी दे । दस अच्छी बातें हैं और एक कमी है तो उत्साह में कमी नहीं आने देना बहुत बड़े -बड़े काम उत्साह से ही शुरू हुए है ।
अगर आप जीवन में अर्थ खोज रहे हैं तो पहली शर्त है -बुद्धिजीवियों और सफल व्यक्तियों को सुनना सीखिये । जो आदमी किसी अच्छे व्यक्ति में दिलचस्पी नहीं रखता उसे निरा बेवकूफ ही समझना चाहिए । ऐसा व्यक्ति अधिकतर हार का मुख देखता है किसी कि न सुनना एक प्रकार का अहंकार है । हमेशा अपनी ही चलाना ,परिणाम पर गौर न करना ,आपकी जो न माने उससे लड़ जाना और अपनी ही बात को आगे रखना आपके आगे बढ़ने के रास्ते को बंद कर देता है ।
शिवत्व में अर्थ -
शिव का एक अर्थ है धैर्य । कैसी भी अवस्था हो शान्ति को भंग नहीं होने देना ,धैर्य का साथ नहीं छोड़ना । सृजन क्रोध से नहीं होता । जब हम दिन भर के कार्य से थक जातें हैं तो रात भर आराम करतें है । तन और मन दोनों विश्राम लेतें हैं अगली सुबह ताजा होकर फिर सृजन में लग जातें हैं । उर्जा से भरे होतें है पूर्ण विश्राम के बाद ।
जब आदमी थका हुआ होता है तो वो यंत्रवत काम करता जाता है । दिमाग उसे नहीं ग्रहण करता फिर उससे भूल भी होती है । जीवन में मान हो ,यश हो ,गुण हो तो सच्चे अर्थों में जीवन का अर्थ मिलता है । इसलिए अपने गुणों को भी देखो । हमारे गुरुजन कहते है अपने दोष देखो ,पर केवल अपने दोषों को देखना ठीक नहीं अपने गुणों को भी न्याय पूर्वक देखो ।
हम मनुष्य है एकाध कमी तो होगी ही पर विचार करो खुद से न्याय करो अपनी अच्छाइयों से अपनी कमी को दबा दो । अपनी तुलना खुद कि अच्छाई और बुराई से करो मनुष्य ईर्ष्या के वशीभूत दूसरों के दोष देखता है ,मोह के कारण अच्छाई देखता है बुराई नहीं । किसी ने हमारी चापलूसी कि और हम फूल जातें हैं हम यह नहीं देखते कि इसने जो कहा सच में मैं वो हूँ या नहीं ।
परमात्मा अगर ऊपर से सब ठीक करदे तो कर्म का सिद्धांत कहाँ रहेगा
अथर्ववेद में प्रगति शीलता एवं कर्मशीलता के लिए एक बहुत सुन्दर मन्त्र आया है । ऋषि कहतें हैं कि -मनुष्य तुम सौ हाथों वाले होकर धन संग्रह करो और साथ ही उचित वितरण भी करो ताकि सभी उन्नति शील बने । ब्यक्तिगत उन्नति स्थिर नहीं रहती । देखो तुम्हारे आस पास कोई भूखा न रहे ,दुखी न रहे । दान निर्धन को देना चाहिए ,जरुरत मंद को दान देना श्रेष्ठ दान है ।
अवसर -किसी काम को करने के लिए कोई अवसर छोटा नहीं होता । मौका मिले करना चाहिए । अवसर को छोटा या बड़ा हम बनाते हैं । आज के महान कलाकार कि जीवन गाथा को देखें तो पता चलता है कि किस तरह पग -पग पर उन्होंने संघर्ष किया । अपमानित भी हुए पर दुखी होकर वे रुके नहीं । अगर वे अपने अपमान को लेकर बैठ जाते तो कुछ न कर पाते ।
किसी भी बात को ,चिंता हो या अपमान उसको ले कर बैठ जाने से सब रुक जायगा इसलिए हमें पुरुषार्थ को अपनी चर्या बनानी चाहिए । हम सकारात्मक सोचे अपने आचरण में निष्ठां को बनाये रखे तो जरुर जीवन शान्ति से गुजरेगा ।
अर्थ पैसे के सन्दर्भ में -
पैसा हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है । पर लक्ष्मी को सहजता के साथ विनीत भाव से रख पाना सबके बस कि बात नहीं होती । अलग अलग लोगों पर पैसे का अलग -अलग प्रभाव पड़ता है । कोई इसे पाकर अपना संतुलन खो देता है ,कोई गलत इस्तेमाल करता है ,कोई मानवीयता छोड़ देता है ,कोई इसके अहंकार में आकर किसी का जीना मुश्किल कर देता है ।